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गर्मियों के मौसम में ऐसे करें प्याज की खेती, होगा बंपर मुनाफा

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें प्याज की खेती, होगा बंपर मुनाफा

देश के कई राज्यों में प्याज की खेती साल में सिर्फ एक बार की जाती है। लेकिन कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां प्याज की खेती साल में तीन बार की जाती है। इसमें महाराष्ट्र का स्थान सबसे ऊपर है। इस राज्य के धुले, अहमदनगर, नासिक, पुणे और शोलापुर जिलों में प्याज का बंपर उत्पादन होता है। यहां पर साल में अमूमन तीन बार प्याज की खेती की जाती है। इसलिए महाराष्ट्र को देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य कहा जाता है। महाराष्ट्र के नाशिक जिले की लासलगांव मंडी को एशिया की सबसे बड़ी प्याज की मंडी का दर्जा प्राप्त है। प्याज का उपयोग ज्यादातर सब्जी के रूप में हर घर में किया जाता है। इसके अलावा थोड़ी बहुत मात्रा में इसका उपयोग दवाई बनाने में भी किया जाता है। प्याज की फसल सामान्यतः 100 से 120 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। प्याज का बंपर उत्पादन होने के कारण किसान भाई इस खेती से ज्यादा मुनाफा कमाते हैं।

प्याज की खेती के लिए उचित जलवायु और मृदा

प्याज की खेती के लिए ज्यादा तापमान उचित नहीं माना जाता। ऐसे में गर्मियों के मौसम में किसानों को यह सुनिश्चित करना होता है कि खेत का तापमान बहुत ज्यादा न बढ़ने पाए। इसके साथ ही शुष्क जलवायु इस खेती के लिए बेहतर मानी जाती है। अगर प्याज की खेती में मृदा की बात करें तो  उचित जलनिकास एवं जीवांषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। प्याज की खेती अत्यंत गीली या दलदली जमीन पर नहीं करना चाहिए। प्याज की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य होना चाहिए। इसके लिए किसान भाई बुवाई के पहले मृदा परीक्षण अवश्य करवा लें।

प्याज की किस्में

बाजार में प्याज की कुछ किस्में ज्यादा प्रसिद्ध हैं, जिनमें एग्री फाउण्ड डार्क रेड, एन-53 और भीमा सुपर का नाम आता है। एग्री फाउण्ड डार्क रेड किस्म को भारत में कहीं भी आसानी से उगाया जा सकता है। इसके कंद गोलाकार होते हैं, जिनका आकार 4 से 6 सेंटीमीटर बड़ा होता है। इसके साथ ही यह फसल 95-110 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। यह किस्म एक हेक्टेयर में 300 क्विंटल का उत्पादन दे सकती है। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों ने निकाली प्याज़ की नयी क़िस्में, ख़रीफ़ और रबी में उगाएँ एक साथ एन-53 किस्म को भी भारत में कहीं भी उगाया जा सकता है। लेकिन इसकी फसल 140 दिनों में तैयार होती है। साथ ही इस किस्म का उत्पादन 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। भीमा सुपर एक अलग तरह की प्याज की किस्म है। जिसमें किसानों को उगाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है और इसका उत्पादन भी 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

ऐसे करें भूमि की तैयारी

प्याज की खेती के लिए भूमि को अच्छे से तैयार करना बेहद जरूरी है। इसके लिए कल्टीवेटर या हैरो की मदद से 2 से 3 बार जुताई करें। जुताई के साथ ही खेत में पाटा अवश्य चलाएं, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके और नमी सुरक्षित रहे। भूमि की सतह से 15 से.मी. उंचाई पर 1.2 मीटर का बेड तैयार कर लें। जिस पर प्याज की बुवाई की जाती है।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

प्याज की फसल के लिए खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मिट्टी के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। अगर खेत में अधिक पोषक तत्वों की जरूरत हो तो खेत में गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन/हेक्टेयर की दर से बुवाई के 1 माह पूर्व डालना चाहिए। इसके अलावा खेत में नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल सकते हैं। यदि खेत की गुणवत्ता ज्यादा ही खराब है तो खेत में सल्फर 25 कि.ग्रा.एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से डाल सकते हैं। ये भी पढ़े: आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

ऐसे तैयार करें पौध

प्याज की पौध को उठी हुई क्यारियों में तैयार किया जाता है। बोने के पहले बीजों को अच्छे से उपचारित करना चाहिए। प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में 15 से 20 ग्राम बीज बोना चाहिए। इसके लिए 3 वर्ग मीटर की क्यारियां बनाना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में 8 से 10 किलोग्राम बीज बोया जाता है।

ऐसे करें रोपाई

प्याज की पौध की रोपाई मिट्टी के तैयार किए गए बेड में की जाती है। इसके लिए एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई करने के लिए 12 से 15 क्विंटल पौध की जरूरत होती है। पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धति से करना चाहिए। इसमें 1.2 मीटर चौड़ा बेड एवं लगभग 30 से.मी. चौड़ी नाली तैयार की जाती हैं। पौध को अंकुरित होने के 45 दिन बाद ही बेड पर लगाना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

प्याज की फसल में खरपतवार से छुटकारा पाने के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। पूरी फसल के दौरान कम से कम 3 से 4 बार निराई गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा खरपतवार को नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थो का उपयोग भी किया जा सकता है। इसके लिए पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर की दर से पैन्डीमैथेलिन का छिड़काव किया जा सकता है। इसे 750 लीटर पानी में घोला चाहिए। इसके अलावा इतने ही पानी में 600-1000 मिली/हेक्टेयर के हिसाब से ऑक्सीफ्लोरोफेन का छिड़काव भी किया जा सकता है। ये भी पढ़े: प्याज की खेती के जरूरी कार्य व रोग नियंत्रण

प्याज की फसल की सिंचाई

प्याज की फसल में सिंचाई बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। अन्यथा फसल तुरंत ही सूख जाएगी। इस फसल में यह ध्यान देने योग्य बात होती है कि जब कंदों का निर्माण हो रहा हो तब खेत में पानी की कमी न रहे। नहीं तो पौध का विकास रुक जाएगा और प्याज का आकार बड़ा नहीं हो पाएगा। ऐसे में उपज प्रभावित हो सकती है। आवश्यकतानुसार 8 से 10 दिन के अंतराल में फसल में पानी देते रहें। यदि खेत में पानी रुकने लगे तो उसकी जल्द से जल्द निकासी की व्यवस्था करना चाहिए। अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।

कंदों की खुदाई

जैसे ही प्याज की पत्तियां सूखने लगती हैं और प्याज की गांठ अपना आकार ले लेती है तो 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देना चाहिए। जब खेत पूरी तरह से सूख जाए, उसके बाद पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंदों की वृद्धि रुक जाती है और कंद ठोस हो जाते हैं। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही सुखाना चाहिए। सूखने के बाद प्याज को भरकर भंडारण के लिए भेज देना चाहिए।
फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला

फरवरी का महीना खेती के लिहाज से बेहद शानदार होता है। वातावरण में कई फसलों के मानक के अनुसार नमी-ठंडी-गर्मी होती है। असल में, फरवरी एक ऐसा माह है जब ठंड की विदाई होती है और गर्मी धीरे-धीरे आती है। सच पूछें तो प्रारंभिक श्रेणी की गर्मी का आगमन फरवरी के आखिरी दिनों में शुरू हो ही जाता है। 

ऐसे में, किसान भाई क्या करें। किसान भाईयों के लिए यह माह बेहद मुफीद है। इस माह अगर वह ध्यान दे दें तो अनेक नकदी फसलों का अपने खेत में लगाकर बढ़िया पूंजी कमा सकते हैं।

फरवरी में बोएं क्या

पहला सवाल बड़ा मार्के का है। फरवरी में आखिर बोएं क्या। फरवरी में बोने के लिए नकद फसलों की लंबी फेहरिस्त है। आप फरवरी में सब्जियां बो सकते हैं। कई किस्म की सब्जियां हैं जो इस मौसम में ही बोई जाएं तो बढ़िया मुनाफ होता है।

कौन सी सब्जियां

फरवरी में आप करेला, खीरा, ककड़ी, अरबी, गाजर, चुकंदर, प्याज, मटर, मूली, पालक, गोभी, फूलगोभी, बैंगन, लौकी, करेला, लौकी, मिर्च, टमाटर आदि बो सकते हैं। इनमें बहुत सारी सब्जियां ऐसी हैं जो 90 दिनों का वक्त लेती हैं लेकिन कुछेक सब्जियां ऐसी भी हैं जो मात्र 50 से 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं।

खेत की तैयारी

मान लें कि आप अपने खेत में खीरा बोना चाहते हैं। खीरा बोने के पहले आपके खेत की कंडीशन कायदे की होनी चाहिए। पहली शर्त यह है कि जो खेत की मिट्टी होनी चाहिए, वह रेतीली दोमट होनी चाहिए। दोमट मिट्टी में भी शर्त यह है कि उसमें जैविक तत्वों की प्रचुर मात्रा हो और पानी की निकासी उम्दा स्तर की हो। 

ऐसे, किसी भी जमीन पर आप अगर खीरा उगाना चाहेंगे तो फेल कर जाएंगे। यह बहुत जरूरी है कि दोमट मिट्टी हो और पानी ठहरे नहीं, निकास होता रहे। वैज्ञानिक भाषा में बात करें तो मिट्टी की गुणवत्ता पीएच 6 या पीएच 7 होनी चाहिए।

जमीन कैसे बनाएं

यह बेहद जरूरी है कि खेत में कोई घास-पतवार नहीं हो। यह बिल्कुल साफ-सुथरा होना चाहिए। दोमट मिट्टी को भुभुरा बनाने के लिए पूरे खेत को तीन से चार बार जोत लेना जरूरी होता है। हल-बैल से जोत रहे हैं तो पांच बार। ट्रैक्टर से जोत रहे हैं तो कम से कम 3 या अधिकतम चार बार जोतें। 

खेत जोतने के बाद मिट्टी में गाय के गोबर को मिलाएं। गाय का गोबर मिलाने के बाद खेत की उर्वरा शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। आप अन्य खाद का इस्तेमाल न करें तो बेहतर। जब गोबर मिला दिया गया तो अब आप 2.5 मीटर चौड़े और 60 सेंटीमीटर की लंबाई का फासला रख कर नर्सरी तैयार कर लें।

बिजाई

बिजाई फरवरी माह में करना उचित होता है। बीजों की बिजाई के वक्त 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी बेड पर दो-दो बीज बोयें और दोनों बीजों के बीच में कम से कम 60 सेंटीमीटर का फैसला जरूर रखें। 

बीज की गहराई कम से कम 3 सेंटीमीटर होनी चाहिए। 3 सेंटीमीटर गहराई में आप जब बीज डालते हैं तो उसे पक्षी निकाल नहीं सकेंगे। फिर उन्हें मुकम्मल रौशनी और हवा भी मिल सकेगी।

कैसे करें बिजाई

खीरे की खेती के लिए छोटी सुरंगी विधि का भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। इस विधि के तहत 2.5 मीटर चौड़े नर्सरी के बेड पर बिजाई होती है। बीजों को बेड के दोनों तरफ 45 सेंटीमीटर के फा.ले पर बोया जाता है। बिजाई के पहले 60 सेंटीमीटर लंबे डंडों को मिट्टी में गाड़ देना चाहिए। 

फिर पूरे खेत को प्लास्टिक शीट से कवर कर देना चाहिए। जब मौसम सही हो जाए तो प्लास्टिक को हटा देना चाहिए। माना जाता है कि खीरे के बीज को गड्ढे में ही बोना चाहिए। आप चाहें तो गोलाकार गड्ढे बना कर भी बीज डाल सकते हैं।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, एक एकड़ खेत में खीरे का एक किलोग्राम बीज काफी है। प्रति एकड़ एक किलोग्राम बीज इसका आदर्श फार्मूला है।

उपचार

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, बिजाई से पहले ही खीरे की फसल को कीड़ों और अन्य बीमारियों से बचाने के लिए अनुकूल रासायनिक का छिड़काव करना चाहिए। बेहतर यह हो कि आप बीजों का 2 ग्राम कप्तान के साथ उपचार कर लें, फिर बिजाई करें।

खीरे की किस्में

  • पंजाब खीरा

यह 2018 में जारी की गई किस्म है। इसके फल हरे गहरे रंग के होते हैं। इनका टेस्ट कड़वा नहीं होता। औसतन इनका वजन 125 ग्राम का होता है। इसकी तुड़ाई आप फसल बोने के 60 दिनों के भीतर कर सकते हैं। फरवरी में अगर आप यह फसल बोते हैं तो माना जा सकता है कि प्रति एकड़ 370 क्विंटल खीरा आपको मिलेगा।

  • पंजाब नवीन खीरा

यह आज से 14 साल पुरानी किस्म है। इसका आकार बेलनाकार होता है। इस फसल में न तो कड़वापन होता है, न ही बीज होते हैं। यह 68 जिनों में पक जाने वाली फसल है। इसकी पैदावार 70 क्विंटल प्रति एकड़ ही होती है।

करेले की बुआई

करेले की बुआई दो तरीके से होती हैः बीज से और पौधे से। आपकी जिससे इच्छा हो, उस तरीके से बुआई कर लें। बाजार में बीज और पौधे, दोनों मौजूद हैं। 

करेले के दो से तीन बीज 2.5 से 5 मीटर की दूरी पर बोएं। बोने के पहले बीज को 24 घंटे तक पानी में जरूर भिगोना चाहिए ताकि अंकुरण जल्द हो। जो नदियों के किनारे का इलाका है, वहां करेले की बढ़िया खेती होती है। खेती के पहले जमीन को जोतना बेहद जरूरी है। 

इसके बाद दो से तीन बार जमीन पर कल्टीवेटर चलवा देना चाहिए। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है, अंकुरण में भी तेजी आती है। उम्मीद है, हमारी दी हुई यह जानकारी आपकी आमदनी बढ़ाने में फायदेमंद साबित होगी।